23-Apr-2023 10:44 PM
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नयी दिल्ली, 23 अप्रैल (संवाददाता) बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने समलैंगिक विवाह की याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ की सुनवाई को लेकर 'गंभीर चिंता' व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि शादी की अवधारणा को मौलिक रूप से बदलना 'विनाशकारी' होगा।
बीसीआई के साथ सभी राज्य बार काउंसिलों की एक संयुक्त बैठक में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कहा गया कि इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए विविध सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि के हितधारकों के एक व्यापक दायरे को ध्यान में रखते हुए यह सलाह दी जाती है कि इससे (याचिका में उठाए गए मुद्दे से) सक्षम विधायिका द्वारा विभिन्न सामाजिक, धार्मिक समूहों को शामिल करते हुए विस्तृत परामर्श प्रक्रिया अपनाकर बाद में निपटा जाए।
बीसीआई ने कहा कि हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव वाले मामले को आवश्यक रूप से विधायी प्रक्रिया के माध्यम से ही आना चाहिए। बीसीआई का मानना है कि उच्चतम न्यायालय का किसी प्रकार से इस मामले में शामिल होना आने वाले दिनों में हमारे देश की सामाजिक संरचना को अस्थिर कर देगी।
बीसीआई के प्रस्ताव में कहा गया है, 'इतिहास के अनुसार, मानव सभ्यता और संस्कृति की स्थापना के बाद से विवाह को आमतौर पर स्वीकार किया गया है और प्रजनन एवं मनोरंजन के दोहरे उद्देश्य के लिए जैविक पुरुष और महिला के मिलन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ऐसी पृष्ठभूमि में विवाह की अवैध अवधारणा के मौलिक रूप से कुछ भी व्यापक बदलाव (किसी भी कानून न्यायालय द्वारा) चाहे वह कितना भी नेकनीयत क्यों न हो, विनाशकारी होगा।
बीसीआई का मानना है कि 'शीर्ष अदालत में इस मामले के लंबित होने की जानकारी मिलने के बाद देश का हर जिम्मेदार और समझदार नागरिक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है। देश के 99.9 फीसदी से अधिक लोग हमारे देश में समान लिंग विवाह पर 'विचार' के विरोध में हैं। '
बीसीआई ने 'विशाल बहुमत का हवाला देते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला हमारे देश की संस्कृति और सामाजिक धार्मिक संरचना के खिलाफ मानाई जाएगा। बार अपनी बैठक में इस अति संवेदनशील मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहा है। संयुक्त बैठक की स्पष्ट राय है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कोई भी लापरवाही दिखाई तो इसका परिणाम आने वाले दिनों में हमारे देश की सामाजिक संरचना को अस्थिर कर देगा।'
बीसीआई के संकल्प में शीर्ष अदालत से इस मुद्दे को विधायी विचार के लिए छोड़ने के लिए कहा गया है।
विधायिका व्यापक परामर्श प्रक्रिया के बाद हमारे देश के लोगों के सामाजिक विवेक और जनादेश के अनुसार उचित निर्णय पर पहुंच सकता है।
बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा के अनुसार, बैठक में सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार अधिवक्ताओं और उनके परिवारों के जीवन, हितों और विशेषाधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कानून बनाए और किसी भी हमले के मामले में उन्हें मुआवजा प्रदान करे।...////...