ओबीसी वोटरों में गहरी पैठ के बाद भी जातीय जनगणना को लेकर भाजपा असहज क्यों?
24-Aug-2021 10:15 AM 7830
नई दिल्ली । जातिगण जनगणना का मुद्दा इन दिनों सियासी गलियारे में खासी चर्चा में है। साल-2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की बड़ी जीत के कारणों में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी रहा कि पार्टी ने ओबीसी वोटरों के बीच गहरी पैठ बनाई है। बीजेपी ने सिर्फ अन्य समुदायों और जातियों के वोट हासिल नहीं किया, बल्कि दलित और आदिवासी वोटों पर खड़ी पार्टियों के वोट बैंक में भी बड़ी सेंध भी लगाई। साथ ही उच्च जाति और उच्च वर्गों के अपने परंपरागत वोट बैंक पर भी पकड़ को मजबूत किया। लेकिन, बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार जातिगत जनगणना को लेकर सहज नहीं है, बावजूद इसके कि सभी पार्टियां मांग कर रही हैं। 1990 के दशक में वीपी सिंह सरकार द्वारा मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किए जाने और इसके तहत केंद्रीय नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले ने भारतीय राजनीति को हमेशा से बदल दिया। खासतौर पर उत्तर भारत में, मंडल के बाद की राजनीति ने मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों को जन्म दिया, खासतौर पर यूपी और बिहार की राजनीति में… मजबूत ओबीसी पार्टियों के चलते मंडल की राजनीति का मुकाबला करने में हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी जैसी पार्टी को अच्छा खासा संघर्ष करना पड़ा। 1990 के उत्तरार्ध में बीजेपी की राजनीति को कमंडल की राजनीति की संज्ञा दी जाती रही है। एलके आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में बीजेपी ने खासी मेहनत की और 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की। बावजूद इसके केंद्र में बीजेपी को गठबंधन के सहयोगी दलों और क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे सरकार बनानी पड़ी। 1998 और 1999 में क्षेत्रीय दलों के पास ओबीसी का वोट शेयर 35.5 फीसद और 33.9 फीसद था। अगर कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकारों की बात करें तो गठबंधन के तहत आने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के पास 2004 और 2009 के चुनावों में क्रमशः 39.3 फीसद और 37.3 फीसद ओबीसी वोट था। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जहां 31 फीसदी वोट मिले, वहीं क्षेत्रीय पार्टियों को कुल 39 फीसदी वोट हासिल हुए थे। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने पहली बार ओबीसी वोटरों में अपनी पैठ को गहरा किया, लिहाजा क्षेत्रीय दलों के समर्थन में टूट हुई और उनके वोट शेयर में 26.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में साफ पता चलता है कि बीजेपी ने पिछले एक दशक में ओबीसी वोटरों में तगड़ी पैठ बनाई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी के 22 फीसदी वोट मिले, जबकि अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को ओबीसी का वोट 42 फीसदी रहा। लेकिन, एक दशक के भीतर ही बीजेपी को ओबीसी के समर्थन में नाटकीय बदलाव आया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी का 44 फीसदी वोट मिला, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों के हिस्से में ओबीसी के सिर्फ 22 फीसदी वोट ही आए। हालांकि बीजेपी को ओबीसी वोटरों के समर्थन में एक पहलू और है। बीजेपी ओबीसी वोटरों की पसंद मुख्य तौर पर लोकसभा चुनावों के लिए है, लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान ओबीसी वोटरों की पसंद बदल जाती है। 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान केवल 11 फीसदी ओबीसी वोटरों ने आरजेडी को वोट किया, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान आरजेडी को ओबीसी का 29 फीसद वोट मिला। उत्तर प्रदेश में 2019 के चुनाव में केवल 14 फीसदी ओबीसी वोटरों ने समाजवादी पार्टी को वोट किया, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान 29 फीसदी ओबीसी वोटरों ने सपा को वोट किया, बावजूद इसके सपा को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। ओबीसी के भीतर भी बीजेपी के लिए उच्च ओबीसी जातियों और निम्न ओबीसी जातियों में से कमजोर तबके की जातियों को अपने पाले में करना बीजेपी के लिए आसान रहा है। हालांकि बीजेपी ने भले ही ओबीसी के भीतर अपनी पैठ को गहरा किया हो, लेकिन अपने परंपरागत वोट बैंक की तरह बीजेपी की पकड़ मजबूत नहीं रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को ओबीसी की उच्च जातियों का वोट शेयर 41 फीसदी रहा, जबकि ओबीसी की निम्न जातियों का वोट शेयर 47 फीसदी रहा। BJP Politics..///..why-is-the-bjp-uneasy-about-the-caste-census-despite-the-deep-penetration-of-the-obc-voters-312987
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