व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक पर संयुक्त समिति की सिफारिशें पेश, निजि गैर-निजि डाटा संरक्षण के नियमन हेतु एक ही निकाय रखने की सिफारिश
16-Dec-2021 09:43 PM 3070
नयी दिल्ली, 16 दिसंबर(AGENCY) संसद की एक समिति ने डाटा संरक्षण विधेयक पर अपनी सिफारिश में व्यक्तिगत और गैर व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण के लिये देश में एक ही डाटा संरक्षण प्राधिकरण बनाने की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि डाटा संरक्षण व्यवस्था के नियमन और प्रशासन के लिय़े एक ही निकाय होना चाहिये ताकि इस काम में कोई भ्रम या विरोधाभास न पैदा हो। भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा सदस्य पीपी चौधरी की अध्य्क्षता में गठित संयुक्त संसदीय समिति ने डाटा संरक्षण विधेयक 2019 पर अपना प्रतिवेदन आज प्रस्तुत किया। समिति की रिपोर्ट दो भागों में है। एक में डाटा संरक्षण और निजिता विधेयक के प्रवधानों के संबंध में 12 सामान्य सिफारिशें एवं सुझाव दिये गये हैं। दुसरा भाग उपबंधों की पंक्तिवार समीक्षा से जुड़ा है, जिसमें 81 सिफारिशें और 150 से अधिक संशोधन और सुधार शामिल है। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि चुकिं विधेयक में केवल एक डाटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है इसलिये व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डाटा के नियमन और प्रशासन के संबंध में दो अलग-अलग निकाय नहीं रखे जा सकते हैं। समिति ने विधेयक के उद्देश्यों और तर्कों का अनुमोदन किया है और कहा है कि यह लोकनीति के दायरे में आते हैं और इनमें निजिता को मौलिक अधिकार के संबंध में अदालती निर्णय (पुट्टास्वामी निर्णय) तथा न्यायमूर्ति बी एन श्रीकृष्णास्वामी की सिफारिशों का ध्यान रखा गया है। समिति ने विधेयक का नाम बदलने की सिफारिश की है। उसका मत है कि नये विधेयक को केवल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण तक के लिये परिभाषित और सिमित करना या इसे व्यक्तिगत डाटा संरणक्षण विधेयक कहना निजता के लिये नुकसानदेह है। समिति की सिफारिश में कहा गया है कि यह विधेयक विभिन्न प्रकार के डाटा के लिये है और इसे सुरक्षा के विभिन्न स्तरों के संबंध में लाया गया है ऐसे में व्यक्तिगत और गैर व्यक्तिगत डाटा के बीच अंतर करना ऐसे दौर में असंभव है जबकि बड़े पैमाने पर डाटा का संरक्षण किया जा रहा है और उसे इधर-उधर भेजा जा रहा है। समिति ने कहा है कि विधेयक को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का प्रस्ताव है, पर इसको लागू करने में न तो बहुत जल्दी की जाये और न ही बहुत विलंब किया जाये। समिति का कहना है कि इसकी अधिसूचना के दो साल के अंदर इसके प्रावधानों को लागू कर दिया जाना चाहिये। इस प्रस्तावित कानून के तहत निर्णय और अपील के न्यायाधिकरण की व्यवस्थाओं एक साल में शुरु कर देनी चाहिये।...////...
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