वर्ष 2024 में भारत की विकास दर 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान: यू एन रिपोर्ट
05-Jan-2024 09:31 PM 7022
नयी दिल्ली 05 जनवरी (संवाददाता) जबरदस्त घरेलू मांग के साथ ही विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों में तीव्र बढोतरी को ध्यान में रखते हुये संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावनाएँ रिपोर्ट में भारत की वृद्धि दर 2024 में 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। पिछले वर्ष की इस रिपोर्ट में भारत की वृद्धि दर के 2023 में 6.3 प्रतिशत रहने की बात कही गयी थी। इसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि 2024 में 5.2 प्रतिशत की दर से मज़बूत रहने का अनुमान है, हाँलाकि यह 2023 की 5.3 की अनुमानित दर से कुछ कम है। इसका श्रेय भारत में ज़बरदस्त विस्तार को दिया गया है जो विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी और दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के सामने चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। बाहरी माँग में मन्दी, वित्तीय शर्तों में कठोरता और लागातर कर्ज़ अदायगी में चूक के जोख़िम, क्षेत्र के आर्थिक सम्भावनाओं एवं सतत् विकास पर भारी पर सकता है। इसमें अनुमान जताया गया है कि वित्तीय शर्तों में कसावट, राजकोषीय साधनों की तंगी और विदेशी माँग में मन्दी के कारण पूर्व एवं दक्षिण एशिया के देशों में आर्थिक वृद्धि धीमी हो रही है। संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख आर्थिक रिपोर्ट में निकट भविष्य के लिए आर्थिक स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश की गयी है। निरन्तर ऊँची ब्याज दर, भूराजनैतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मन्दी और बढ़ती जलवायु आपदाएँ वैश्विक वृद्धि के लिए भारी चुनौतियाँ हैं। विश्व की आर्थिक वृद्धि की दर 2023 की अनुमानित 2.7 प्रतिशत से मन्द होकर 2024 में 2.4 प्रतिशत रहने की बात कही गयी है जो वैश्विक महामारी पूर्व 3 प्रतिशत की वृद्धि दर से कम है। इसमें कहा गया है कि लम्बे समय तक ऋण की तंगी और ऋण की ऊँची लागत, कर्ज़ में डूबी विश्व अर्थव्यवस्था के लिए सुखद संकेत नहीं है जबकि उसे वृद्धि में जान डालने, जलवायु परिवर्तन का सामना करने औऱ सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में तेज़ गति से बढ़ने के लिए पहले से अधिक निवेश की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के अनुसार, “ 2024 में हमें इस मकड़जाल से निकलना होगा। बड़ी मात्रा में साहसिक निवेश के ज़रिए हम सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई का ख़र्च उठा सकते हैं और विश्व अर्थव्यवस्था को सबके हित में मज़बूत वृद्धि के रास्ते पर ले जा सकते हैं। हमें सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई में निवेश हेतु उचित लागत पर दीर्घकालिक वित्त पोषण में कम से कम 500 अरब डॉलर वार्षिक के सतत् विकास लक्ष्य प्रोत्साहन पैकेज की दिशा में पिछले वर्ष की प्रगति के सहारे आगे बढ़ना होगा।” पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में कुछ मन्दी की आशंका है। इनका सकल घरेलू उत्पाद 2023 के 4.9 प्रतिशत की तुलना में घटकर 2024 में 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अधिकाँश देशों में मुद्रास्फीति के दबाव में कमी और श्रम बाज़ार की स्थिति में लगातार सुधार के दम पर निजी खपत में बढ़ोतरी मज़बूत रहने का अनुमान है। सेवाओं, विशेषकर पर्यटन निर्यात में ज़बर्दस्त रिकवरी हो रही है लेकिन वैश्विक माँग मन्द होने के कारणवस्तुओं का निर्यात कम होगा जबकि क्षेत्र की अनेक अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि मुख्य रूप से उससे संचालित होती है। चीन की आर्थिक रिकवरी मुश्किल में है। उसके सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2023 में लगभग 5.3 प्रतिशत हो गयी किन्तु सम्पत्ति क्षेत्र में कमज़ोरी, हल्की विदेशी माँग और व्यापार सम्बन्धों में तनाव के कारण 2024 में यह दर 4.7 प्रतिशत रह जाने की आशंका है। सरकार ने वृद्धि में स्थिरता और बढ़ोतरी के लिए नीतिगत समर्थन बढ़ाया है, नीतिगत दरों और गिरवी दरों में कमी की है और नये बन्धपत्रों के माध्यम से निजी क्षेत्र निवेश में बढ़ोतरी की है। 2024 में पूर्व एशिया में मुद्रास्फीति 2023 की 1.2 प्रतिशत की तुलना में 2024 में 1.9 प्रतिशत होने की आशंका है। दक्षिण एशिया में 2023 की 13.4 प्रतिशत की अनुमानित दर की तुलना में 2024 में मुद्रास्फीति घटकर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसका कारण घरेलू माँग में ठील, अंतरराष्ट्रीय जिन्स मूल्यों में स्थिरता एवं स्थानीय मुद्रा अवमूल्यन में कमी हो सकता है। किन्तु जिन्सों के मूल्यों में वृद्धि और मौसम की विकट घटनाओं के दुष्प्रभाव, मुद्रास्फीति में गिरावट की गति मन्द कर क्षेत्र में खाद्य असुरक्षा का जोखिम बढ़ा सकते हैं। इन अनुमानों में गिरावट के रुख की आशंका बहुत अधिक है। बड़े विकसित देशों में लम्बे समय तक ऊँची ब्याज दरों की आशंका से विश्व में वित्तीय शर्तों में कसावट, उधारी लागत बढ़ा सकती है जिससे विशेषकर, दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज़ तनाव एवं भुगतान सन्तुलन संकटों में वृद्धि की आशंका है। बार-बार भीषण जलवायु आपदाओं के आने से आर्थिक क्षति बहुत बढ़ सकती है। मुद्रास्फीति के दबाव में कमी के दौरान पूर्व एवं दक्षिण एशिया में अधिकतर केन्द्रीय बैंकों ने 2023 में ब्याज दरों बढ़ाने की गति मन्द कर दी या उनमें विराम दिया जबकि कुछ ने वृद्धि को सहरा देने की कोशिश में दरें घटा दीं। किन्तु मौद्रिक अधिकारी सतर्क रहने वाले हैं क्योंकि खाद्य पदार्थों एवं ईंधन के दाम बढ़ने की आशंका में मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चितता रहेगी। 2024 में केन्द्रीय बैंक मुद्रास्फीति क़ाबू में रखने, वृद्धि को फिर पटरी पर लाने और वित्तीय स्थिरता की कोशिश में नाज़ुक सन्तुलन करते रहेंगे। पूर्व एवं दक्षिण एशिया की अनेक अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय गुँजाइश सीमित होने के कारण सरकारों को राजस्व बढ़ाने वाले सुधार अपनाने होंगे जिनमें कर आधार में विस्तार एवं कर नियमों का बेहतर पालन शामिल है। देशों को व्यय कुशलता सुधारनी होगी। इसके लिए आर्थिक बुनियादी ढाँचे में बढ़ोतरी, डिजीटलीकरण के विस्तार और सामाजिक संरक्षण तँत्रों की मज़बूती पर ध्यान देते हुए व्यय का रुख लाचार समूहों के हित में मोड़ना होगा और भौतिक एवं मानव पूँजी को बढ़ाना होगा ताकि उसे लम्बे समय तक जारी रखा जा सके। कर्ज़ अदायगी में चूक की आशंका वाले देशों, विशेषकर कुछ दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं, में कर्ज़ का बोझ वहन करने के लिए विश्वसनीय मध्यकालिक राष्ट्रीय राजकोषीय तँत्रों की आवश्यकता बतायी गयी है।...////...
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