नागा साधुओं की अटल अखाड़ा पेशवाई में अध्यात्म, परंपरा और शक्ति का संगम
01-Jan-2025 07:33 PM 1992
प्रयागराज,01 जनवरी (संवाददाता) विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम महाकुंभ मेले में नागा साधुओं की अटल अखाड़ा पेशवाई में अध्यात्म और परंपरा का सैलाब उमड़ पड़ा। पारंपरिक शोभायात्रा में अध्यात्म, परंपरा और शक्ति का अद्भुत संगम भी देखने को मिला। अखाडों का मुख्य आकर्षण पेशवाई होती है। इसी अवसर पर अखाड़ों की तरफ से उनके वैभव और शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है। इसी क्रम में सबसे आगे अखाड़े का ध्वज लहरा रहा था। सड़क के बीचो बीच घोड़े पर सवार नागा सन्यासी नगाड़ा बजाते हुए सबसे आगे चल रहे थे। इसके बीच में साधु, महात्मा, सन्यासी, नागा चल रहे थे। पेशवाई का नेतृत्व करते हुए जब सड़क पर रथ पर चांदी के सिंहासन पर आरूढ़ आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती महराज की सवारी गुजर रही थी तब कुछ लोग शीश झुकाकर प्रणाम कर आशीष मांग रहे थे। उनके पीछे आराध्य देव भगवान गणेश की पालकी चल रही थी जिसके दोनो बगल में दो महात्मा चंवर डुला रहे थे। अखाडे के सर्वशक्तिशाली पंच के रथ फूलो से सुसज्जित रह चल रहे थे। अखाड़े की पेशवाई में श्रद्धा, परंपरा और वैभव का समागम नजर आया। नागाओं की फौज में अस्त्र शस्त्र के साथ पेशवाई के बीच में जगह-जगह रुककर युद्ध कौशल का भी प्रदर्शन किया। उनके तलवारबाजी और लाठी भांजने के करतब देख श्रद्धालु आश्चर्य चकित रहे गये। लोगों ने संतों के साथ सेल्फी ली। पेशवाई के बीच में रथ पर सवार साधु-महात्मा दर्शन के लिए कतार में खड़े श्रद्धालुओं पर जल में पुष्प डुबोकर छिड़क रहे थे। इस दौरान मार्ग के दोनों ओर बड़ी संख्या में कतार में खड़े श्रद्धालु जगह जगह साधु और महात्माओं का स्वागत फूलों की वर्षा से किया। मेला प्रशासन ने भी अखाड़े के संतों का फूल माला पहनाकर स्वागत किया। अखाड़े की पेशवाई बक्शीखुर्द दारागंज से नवनिर्मित अटल अखाड़ा भवनसे प्रारंभ होकर बख्सी बांघ तिराहा एवं नागवासुकी तिराहा से निराला मार्ग होते हुए संकट मोचन हनुमान मंदिर मार्ग के सामने से शास्त्री पुल के नीचे किला घाट सहित अमाम अन्य ठौर होते हुए त्रिवेणी मध्य पंटून पुल से होकर साधु संतों नागाओं ने ढोल नगाड़ों की धुन और गाजे बाजे के साथ घोड़े, ऊंट और रथ पर सवार होकर राजसी अंदाज में झूंसी स्थित सेक्टर बीस के शिविर में पहुंची जहां पहले से लहरा रहे धर्म ध्वज के बगल में आराध्य को स्थापित करने के बाद साधु संतों ने जयकारे लगाए। नागा सन्यासियों समेत सभी साधु,महात्मा शिविर में पहुंचने के बाद वहां की मिट्टी को माथे से लगाया। श्री शम्भू पंच अटल अखाड़ा के श्री दिगंबर ईश्वरगिरी महराज ने बताया कि पेशवाई का मतलब है, राजसी शानो-शौकत के साथ साधु-संतों का कुंभ में प्रवेश करना। यह एक ऐतिहासिक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। महाकुंभ मेले में पेशवाई एक बहुत ही महत्वपूर्ण और भव्य समारोह होता है। सनातन धर्म के ध्वजवाहक सभी 13 अखाड़े अपनी-अपनी धार्मिक और समृद्ध परंपराओं को संरक्षित रखते हुए समय के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। छावनी में अखाड़े के प्रवेश के बाद पूरे मेले के दौरान साधु संत वहीं रहेंगे और कुंभ के दौरान पड़ने वाले प्रमुख तीन अमृत स्नान मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा और बसंत पंचमी पर्वों पर शाही स्नान भी करेंगे। उन्होंने बताया कि नागा संन्यासी सनातन परचम के पुरातन प्रहरी है। निर्वस्त्र, दीन-दुनिया और लोक लिहाज की सांसारिक परिभाषा से अलग नंग-धड़ंग, शिव जैसी जटा, हाथ में डमरू, त्रिशूल. शरीर पर भस्म, बिना वस्त्र ये अवधूत।नागा का जो दूसरा अर्थ आध्यात्मिक है, उसके मुताबिक नागा सनातन धर्म में सिद्धि प्राप्त आत्माओं का एक समूह है। हाथों में चिलम और कश लगाता. दीन-दुनिया से अलग धुनी रमाता है। शिव के साधक, नागाओं का ये समूह आम साधु संतों की तरह दिखाई नहीं देता, मगर जब कुंभ या अर्धकुंभ में ये उमड़ता है, तो सबकी नजरे कौतूहल से भर उठती हैं।...////...
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