मुख्य विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री को लिखा संयुक्त पत्र ,लोकतंत्र से निरंकुशता की ओर बढ़ने का लगाया आराेप
05-Mar-2023 11:37 PM 4868
नयी दिल्ली, 05 मार्च (संवाददाता) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य विपक्षी दलों ने रविवार को संयुक्त रूप से एक पत्र लिखकर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग को रोकने की बात कही है। पत्र में कहा गया कि हमें उम्मीद है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग को देखकर ऐसा लगता है कि हम लोकतंत्र से निरंकुशता की ओर बढ़ रहे हैं। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ,एनसीपी के शरद पवार ,आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल (शिवसेना-उद्धव गुट) के उद्धव ठाकरे , आप के भगवंत मान, और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव शामिल है। पत्र में कहा गया कि लंबे समय तक जांच और पूछताछ के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी, 2023 को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बिना किसी सबूत के गिरफ्तार कर लिया। उन पर लगाए गए आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और यह एक राजनीतिक साजिश है। उनकी अवैध गिरफ्तारी से पूरे देश के नागरिक नाराज हैं। श्री मनीष सिसोदिया को स्कूली शिक्षा में बड़े सुधार करने के लिए वैश्विक पहचान मिली है और उनकी गिफ्तारी राजनीतिक विरोधियों को डराने के उद्देश्य से की गई है। श्री सिसोदिया की अवैध गिरफ्तारी से दुनिया को संदेह हो रहा है कि भाजपा के निरंकुश शासन में भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा मंडरा रहा है। पत्र में कहा गया कि आपके शासनकाल में 2014 से अब तक जिन प्रमुख राजनेताओं पर मामला दर्ज किया गया है, गिरफ्तार किया गया है, हमला किया गया है और मुकदमा चलाया गया है, उनमें से अधिकांश विपक्षी नेता हैं जबकि भाजपा में शामिल हुए विपक्षी नेताओं के मामले में जांच एजेंसियां संयम बरत रही हैं। पत्र में उदाहरण देते हुये कहा गया कि 2014 और 2015 में, सीबीआई और ईडी ने शारदा चिट फंड मामले में कांग्रेस के पूर्व सदस्य और असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा की जांच शुरू हुई लेकिन उनके भाजपा में शामिल होने के बाद मामले की जांच रूक गई। इसी तरह, नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में, तृणमूल कांग्रेस के पूर्व नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय के पीछे सीबीआई और ईडी पड़ी हुई थी लेकिन उनके भाजपा में शामिल होते ही जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। इसी तरह महाराष्ट्र के नारायण राणे सहित ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं। पत्र के अनुसार, 2014 के बाद से विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने, केस दर्ज करने और गिरफ्तार करने की घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं। इनमें लालू प्रसाद यादव (राष्ट्रीय जनता दल), संजय राउत (शिवसेना), आजम खान (समाजवादी पार्टी), नवाब मलिक, अनिल देशमुख (राकांपा), अभिषेक बनर्जी (टीएमसी) आदि के नाम शामिल हैं। इन घटनाओं को देखते हुए लगता कि केंद्रीय जांच एजेंसियां केंद्र सरकार के सहायक विभागों की तरह काम कर रही हैं। ऐसे कई मामलों में दर्ज मुकदमों और गिरफ्तारियों के समय पर नजर डालें तो लगता है कि ये राजनीति से प्रेरित होते हैं चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए किए जाते हैं। इससे इस आरोप को बल मिलता है कि भाजपा की केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है और विपक्ष को दबाने के लिए विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं को निशाना बना रही है। पत्र में लिखा है कि आपकी सरकार में विपक्ष के खिलाफ काम करने वाली आरोपी केंद्रीय जांच एजेंसियों की सूची केवल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ही नहीं है और केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए जांच एजेंसियों ने अपनी प्राथमिकताएं बदल ली हैं। पत्र के अनुसार, इंटरनेशनल फॉरेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एसबीआई और एलआईसी को हुए नुकसान पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। उसकी रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि एसबीआई और एलआईसी को एक कंपनी विशेष में 78 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के कारण घाटा हुआ है। सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के बावजूद संबंधित संस्थानों की वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए केंद्रीय एजेंसियां सक्रियता नहीं दिखा रही हैं। ऐसा लगता है कि केंद्र की भाजपा सरकार देश के संघवाद पर प्रहार करने के लिए एक और व्यवस्था को उकसा रही है। देश भर में राज्यपालों के कार्यालय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं और राज्यों के शासन में बाधाएं उत्पन्न कर रहे हैं। राज्यपाल जानबूझकर अपनी मनमानी करते हुए लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई राज्य सरकारों को कमजोर कर रहे हैं। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तेलंगाना और दिल्ली सहित जहां भी भाजपा विरोधी दलों की सरकार है, राज्यपाल केंद्र और राज्यों के बीच मतभेदों को बढ़ा रहे हैं और संघवाद की भावना के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। हालांकि, राज्यों ने संघवाद की भावना का प्रदर्शन किया है और संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखा है। पत्र में लिखा गया है कि हम राज्यपाल और केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा संवैधानिक कार्यालयों के दुरुपयोग की कड़ी निंदा करते हैं। यह और कुछ नहीं बल्कि हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन है। 2014 से विपक्ष के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई से उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है। साथ ही उन संगठनों की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। भारत के लोगों का विश्वास डगमगा रहा है। अगर लोग किसी अन्य पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं, चाहे वह आपकी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ ही क्यों न हो, तब आपको जनादेश का सम्मान करना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में जनमत ही सर्वोपरि होता है।...////...
© 2025 - All Rights Reserved - Khabar Baaz | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^