‘जीएसटी के अगले चरण में पेट्रोलियम, बिजली पर ध्यान देने, दरों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत’
30-Jun-2025 09:21 PM 6374
नयी दिल्ली, 30 जून (संवाददाता) परामर्श सेवा कंपनी ईवाई इंडिया के पार्टनर और अप्रत्यक्ष कर नीति प्रभाग के प्रमुख बिपिन सपरा ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के आठ वर्ष के अनुभवों को भारत में कर सुधार के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक यात्रा बताया और कहा है कि इसके दूसरे चरण में अब पेट्रोलियम पदार्थों और बिजली को भी इसमें लाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। श्री सपरा ने अगले चरण में जीएसटी दरों को और तर्कसंगत किए जाने की भी सिफारिश की है। पूरे देश में प्रचलित विभिन्न अप्रत्यक्ष करों को समाहित कर इस नयी कर व्यवस्था को 01 जुलाई 2017 से लागू किया गया था। श्री सपरा ने एक टिप्पणी में कहा कि जीएसटी ने कर अनुपालन को सरल बनाया है, इससे बाजार एकीकृत हुआ है, और एक सहकारी संघीय ढांचे को प्रोत्साहन मिला है। उन्होंने कहा, “राजस्व संग्रह में उछाल से (इसके उपरोक्त अनुकूल प्रभाव) स्पष्ट हैं।” उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, जहाँ भी आवश्यक दिखा, कानून और दरों में बदलाव किए गए, मुकदमों को कम करने के लिए स्पष्टीकरण जारी हुए और व्यापार करने में आसानी के लिए अनुपालन के डिजिटलीकरण आदि के माध्यम से इस कर प्रणाली का विकसित हुआ है। श्री सापरा ने कहा, “हालाँकि, अगले चरण जीएसटी 2.0 को पेट्रोलियम और बिजली जैसे क्षेत्रों जीएसटी के दायरे में लाकर कर आधार का विस्तार करने, जीएसटी दर संरचना को तर्कसंगत बनाने, इनपुट टैक्स क्रेडिट पर पाबंदियों को कम करने और ऑडिट और जांच को सुव्यवस्थित करने-इन चार प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “ऐसे समय जबकि भारत 5000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है, जीएसटी को देश में व्यापार करने में आसानी, निवेश और समावेशी विकास के लिए रणनीतिक सामर्थ्य को प्रोत्साहित करने वाली एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में काम करना होगा।” व्यापक परामर्श और राजनीतिक रस्साकशी के बाद संवैधानिक संशोधन (122वां संशोधन) के तहत बनाए गए नए कानूनों के अनुसार केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न अप्रत्यक्ष करों के जटिल जाल की जगह एकीकृत जीएसटी व्यवस्था लागू की गयी। इसका उद्देश्य घरेलू बाजार को एकीकृत करना, अनुपालन को सुव्यवस्थित करना और कराधान में पारदर्शिता बढ़ाना था। विश्लेषकों का मानना है कि बड़ी और छोटी हर स्तर की इकाई के लिए यह यात्रा चुनौतीपूर्ण और परिवर्तनकारी दोनों रही है। उन्होंने कहा कि जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-3बी, जीएसटीआर-9 और जीएसटीआर-9सी जैसे कई मासिक और वार्षिक रिटर्न के साथ-साथ मिलान की आवश्यकताओं और ऑडिट ट्रेल्स के साथ, करदाता इकाइयों ने अनुपालन पर निरंतर ध्यान देने के महत्व को स्वीकार किया है। इसके अलावा, करदाता व्यावसायिक इकाईयों के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) दावों के लिए चालानों का वास्तविक समय में मिलान को देखते हुए लेन-देन का हिसाब सही रखना अनिवार्य हो गया है।...////...
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