जनरल द्विवेदी और जनरल स्टुअर्ट सहपाठी तथा समकक्ष के रूप में संबंधों को बना रहे हैं मजबूत
10-Aug-2025 06:58 PM 6219
नयी दिल्ली 10 अगस्त (संवाददाता) भारत यात्रा पर आये आस्ट्रेलियाई लेफ्टिनेंट जनरल साइमन स्टुअर्ट और भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी सहपाठी और समकक्ष के रूप में दोनों देशों के बीच रक्षा संंबंधों का मजबूत सेतु बना रहे हैं। जनरल स्टुअर्ट रविवार से भारत की पांच दिन की यात्रा पर आ रहे हैं। उन्होंने जनरल उपेंद्र द्विवेदी के साथ वर्ष 2015 में अमेरिका के आर्मी वॉर कॉलेज में एक साथ प्रशिक्षण लिया था और उस समय से दोनों के बीच एक पेशेवर जुड़ाव है जो उनके करियर के साथ-साथ परिपक्व हुआ है। दोनों अब अपने-अपने देशों की सेनाओं की बागडोर संभाल रहे हैं। उनकी यह साझा शैक्षणिक पृष्ठभूमि न केवल आपसी विश्वास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती है, बल्कि एक गहरी रणनीतिक समझ भी बनाती है जिससे दोनों सेनाओं के बीच अधिक सार्थक सहयोग का मार्ग प्रशस्त होता है। लेफ्टिनेंट जनरल स्टुअर्ट की यात्रा इसलिए आधिकारिक मुलाकातों और औपचारिक स्वागतों के कार्यक्रमों से कहीं उपर होगी। यह दो सैन्य पेशेवरों का पुनर्मिलन होगा, जिनका साझा अतीत भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा संबंधों की नींव को मजबूत करता है। सेना की भाषा में वर्दी में बना विश्वास जीवन भर रहता है और कूटनीति की भाषा में यह अक्सर और भी लंबे समय तक बना रहता है। सेना का मानना है कि रक्षा कूटनीति के क्षेत्र में सैन्य नेतृत्व के बीच साझा प्रशिक्षण अनुभव अक्सर स्थायी साझेदारियों के बीज बोते हैं जो राजनीतिक चक्र और रणनीतिक बदलावों के बावजूद लंबे समय तक टिके रहते हैं। जब सैन्य कमांडर अपने प्रारंभिक या मध्य-कैरियर चरणों में एक साथ प्रशिक्षण लेते हैं तो वह न केवल पेशेवर क्षमता विकसित करते हैं बल्कि एक-दूसरे के देशों, संस्कृतियों और सशस्त्र बलों की गहरी, व्यक्तिगत समझ भी विकसित करते हैं। यह ‘पूर्व छात्र संपर्क’ यानी ‘एलुमनी कनेक्ट’ रणनीतिक सॉफ्ट पावर का एक अनूठा साधन बन जाता है। यह विश्वास का निर्माण करता है, स्पष्ट संवाद को सुगम बनाता है और शांति तथा संकट दोनों समय में निर्बाध सहयोग को सक्षम बनाता है। सेना का कहना है कि जनरल स्टुअर्ट की 10 से 14 अगस्त की यात्रा इस का एक जीवंत उदाहरण है। इसके कूटनीतिक महत्व को समझते हुए सेना ने एलुमनी कनेक्ट पहल को औपचारिक रूप देना शुरू कर दिया है, जिसमें डेटाबेस बनाए रखना, पुनर्मिलन आयोजित करना और सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज जैसे थिंक टैंक सहयोगों और ऑस्ट्रेलियाई सेना अनुसंधान केंद्र ) के साथ हाल ही में नवीनीकृत पांच-वर्षीय समझौता ज्ञापन के माध्यम से निरंतर पेशेवर जुड़ाव को प्रोत्साहित करना शामिल है। पाठ्यक्रम की तस्वीरें धुंधली हो जाने के बाद भी संबंधों को बनाए रखने के लिए ‘फ्रेंड्स फॉर लाइफ’ पोर्टल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी कार्य किया जा रहा है। भारत के प्रमुख सैन्य संस्थान जैसे भारतीय सैन्य अकादमी , राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय , रक्षा सेवा स्टाफ महाविद्यालय , और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी दशकों से मित्र देशों के अधिकारियों का स्वागत करते रहे हैं। इनमें से कई पूर्व छात्र अपनी सेनाओं में सर्वोच्च पदों तक पहुँचे हैं और भारत के पेशेवर लोकाचार के वर्दीधारी राजदूत बन गए हैं। यह नेटवर्क काफी बड़ा और प्रभावशाली है। इसके अंतर्गत श्रीलंका के वर्तमान और सेवानिवृत्त प्रमुखों सहित 8 वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इसके अलावा नेपाल के 9 वरिष्ठ अधिकारी, बांग्लादेश के 6 , मलेशिया के 6, भूटान के दो, नाइजीरिया के तीन और ऑस्ट्रेलिया के दो वरिष्ठ अधिकारी इन भारतीय संस्थानों में प्रशिक्षण ले चुके हैं। इसके उल्लेखनीय उदाहरणों में श्रीलंकाई सेना प्रमुख, जो आईएमए और स्कूल ऑफ आर्टिलरी के पूर्व छात्र हैं, और श्रीलंकाई सीडीएस, जो एनडीसी के स्नातक हैं शामिल हैं। इसके अलावा भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव, फ्रांस, तंजानिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, नामीबिया,केन्या, फिजी और थाईलैंड तथा अन्य देशों के प्रमुख और वरिष्ठ कमांडर भी भारतीय सेना के साथ इस साझा बंधन को साझा करते हैं। सेना के अनुसार यह पूर्व छात्र नेटवर्क दोनों तरफ से काम करता है। भारतीय अधिकारियों ने भी आर्मी वॉर कॉलेज (अमेरिका), रॉयल कॉलेज ऑफ डिफेंस स्टडीज (ब्रिटेन), इकोले डे गुएरे (फ्रांस) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्ययन किया है, जहाँ से वे वैश्विक दृष्टिकोण लेकर आते हैं और साथ ही विदेशों में अपने साथियों के साथ स्थायी संबंध भी बनाते हैं। सेना का कहना है कि यह एकतरफा आदान-प्रदान नहीं है। भारतीय सेना के अधिकारी स्वयं विदेशों में पेशेवर सैन्य शिक्षा से प्रभावित हुए हैं। फील्ड मार्शल के एम करियप्पा और सैम मानेकशॉ इंपीरियल डिफेंस कॉलेज, ब्रिटेन के पूर्व छात्र थे, जबकि जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आर्मी वॉर कॉलेज, अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की थी। इस तरह के आदान-प्रदान अधिकारियों को व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण, परिचालन संबंधी सर्वोत्तम प्रथाओं और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए एक साझा शब्दावली से लैस करते हैं। सेना के अनुसार आज के जटिल सुरक्षा परिवेश में जहां साझेदारियों को रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और सहयोग के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है, ‘एलुमनी कनेक्ट’ केवल पुरानी यादों से कहीं अधिक है, यह एक रणनीतिक संबल है। जो अधिकारी कभी बैरक और कक्षाएं साझा करते थे, वे अब बातचीत की मेजों पर बैठते हैं या संयुक्त अभियानों का नेतृत्व करते हैं, और अपने प्रशिक्षण के दिनों में विकसित विश्वास और पारस्परिक सम्मान को साथ लेकर चलते हैं। जैसे-जैसे भारत हिंद-प्रशांत से लेकर संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना तक क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा संरचनाओं में एक बड़ी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखता है, इन व्यक्तिगत संबंधों का शांत, स्थायी प्रभाव सैन्य कूटनीति का एक अनिवार्य उपकरण बना रहेगा।...////...
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