बजट 2022-23 में वित्त मंत्री के सामने होगी निजी उपभोग, निवेश को प्रोत्साहन देने की चुनौती
30-Jan-2022 11:47 PM 3597
नयी दिल्ली, 30 जनवरी (AGENCY) आम बजट 2022-23 इसी सप्ताह प्रस्तुत करने की तैयारी में लगीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए ‘न भूतो, न भविष्यति ’जैसे संकट से उबर रही अर्थव्यवस्था को कोविड-19 के नए स्वरूप के चलते उत्पन्न नयी चुनौतियों में संभालना और उपभोग तथा निवेश की मांग को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। वित्त मंत्री सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट अधिवेशन के दूसरे दिन एक फरवरी को 11 बजे लोक सभा में बजट प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगी। यह उनका चौथा बजट होगा। उन्होंने 31 मई 2019 को जब वित्त मंत्रालय का दायित्व संभाला तो उनके सामने उस समय नरमी के दौर में फंसी भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने की चुनौती थी। लेकिन उसके अगले साल कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी ने उनके सामने सदियों में कभी कभार दिखने वाला एक संकट खड़ा कर दिया। जिसमें देश दुनिया के लिए अर्थव्यवस्था से पहले जनता की प्राण रक्षा प्रथम चुनौती बन गयी। कोविड-19 टीकाकरण की दिशा में भारत की रिकार्ड प्रगति से अर्थव्यवस्था को भी जान मिली है, पर अभी होटल, यात्रा और सीधे सम्पर्क पर चलने वाले कारोबार पूरी तरह उबर नहीं सके हैं। उपभोक्ताओं के अधिकार और प्रतिस्पर्धा नीति पर केंद्रित गैस सरकारी संगठन कट्स के अर्थशास्त्री सुरेश सिंह ने कहा, ‘कोविड के समय, जबकि अर्थव्यस्था ठहर गयी थी, सरकार के लिए संसाधन जुटाना एक बड़ी चुनौती थी। वित्त मंत्री सीतारमण ने कोविड संकट के समय जिस तरह वित्तीय संसाधनों का प्रबंध किया, दबाव के बावजूद पेट्रोलियम उत्पादों पर तब तक कर कम नहीं किया, जब तक कि आय के स्रोत चालू नहीं हुए, वह उल्लेखनीय है। उनके नेतृत्व में वित्त मंत्रायल ने संसाधनों का बहुत अच्छे तरीके से उपयोग किया, आत्मनिर्भर भारत पैकेज में आप को कहीं अनावश्यक सब्सिडी या छूट नहीं दिखेगी। ये पैकेज बदलाव लाने वाले हैं, उनका असर दिख रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘निम्न तुलनात्मक आधार का असर ही सही पर चालू वित्त वर्ष में भारत में नौ प्रतिशत से अधिक की अनुमानित आर्थिक वद्धि का होना एक बड़ी उपलब्धि है। इसमें मुख्य भूमिका सरकार द्वारा वित्तीय संसाधनों के अच्छे तरीके से उपयोग और परियोजनाओं के बहुत अच्छे क्रियान्वयन के तौर तरीकों से संभव लगता है।’ कोविड19 संकट के बीच 2020-21 में सकल घरेल उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत संकुचन के बाद वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर नौ से साढ़े नौ प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। वृद्धि दर में इस अनुमानित सुधार के वाबजूद देश का जीडीपी कोविड से पहले वर्ष 2019-20 के जीडीपी से डेढ़ प्रतिशत से कम ही ऊंचा होगा। वर्ष 2019-20 में आर्थिक वृद्धि उससे पिछले साल के 6.5 प्रतिशत से घट कर चार प्रतिशत पर आ गयी थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि 20.1 प्रतिशत (तुलना के आधार का प्रभाव) और दूसरी तिमाही में (जुलाई- सितंबर21)में 8.4 प्रतिशत रही। रेटिंग एजेंसी इक्रा की अर्थशास्त्री अदिती नायर का कहना है कि ओमीक्रॉन के चलते अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है, जिससे तीसरी तिमाही में कारोबार और आर्थिक वृद्धि प्रभावित हुई है। उन्होंने एक नोट में कहा ‘पहले उम्मीद थी कि तीसरी तिमाही ( अक्टूबर- दिसंबर 2021) की वृद्धि छह- साढ़े छह प्रतिशत तक रहेगी पर अब इसके पांच प्रतिशत के आस पास ही रहने की संभावना है।’ विश्लेषकों का मानना है कि आगामी बजट में निजी उपभोग और निवेश मांग को प्रोत्साहित करने की चुनौती होगी तभी आर्थिक गतिविधियों को गति मिलेगी। कोविड-19 के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, पेट्रोलियम उत्पादों की महंगाई और सामान्य मुद्रास्फीति के बदलाव से निजी उपभोग और निवेश मांग गिरी है। कंसल्टेंसी फर्म ईवाई के मुख्य नीतिगत सलाहकार डीके श्रीवास्तव का कहना है कि आगामी बजट में उपभोग और निवेश मांग को प्राथमिकता देने की जरूरत है। आंकड़ों के मुताबिक अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग का हिस्सा वित्त वर्ष 2019-20 में 57.1 प्रतिशत से घट कर 2020-21 में 56 प्रतिशत और 2021-22 में गिर कर 54.8 प्रतिशत पर आ गया। चालू वित्त वर्ष में सकल स्थिर पूंजी सृजन में 15 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है पर इसमें बड़ा योगदान सरकारी क्षेत्र में पूंजी निवेश का है। वित्त मंत्री चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपए की प्राप्ति से कोसों दूर रह सकती है पर विश्लेषकों का मानना है कि वह राजकोष घाटे को सीमित करने के लक्ष्य को हासिल कर लेंगी। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.8 प्रतिशत के बराबर रखने का लक्ष्य रखा गया है। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त मंत्री के समक्ष अभी आर्थिक वृद्धि को संभालने की प्राथमिकता है और ऐसे में वह वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य सीमित कर सकती हैं। उसे 6.3 से 6.5 प्रतिशत रख सकती हैं। विनिवेश से अभी तक 12,030 करोड़ जुटे हैं जबकि लक्ष्य करीब 14-15 गुना ऊंचा है। विश्लेषकों का कहना है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का प्रथम सार्वजनिक शेयर निर्गम (आईपीओ) मार्च तक आ भी गया (जिसकी संभावना कम लगती है), तो भी विनिवेश का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। पर चालू वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर राजस्व की वसूली में उछाल है। चालू वित्त वर्ष में दिसंबर 2021 के मध्य तक व्यक्तिगत और कार्पोरेट आयकर (प्रत्यक्ष करों) से शुद्ध प्राप्तियां 9.45 लाख करोड़ रुपये रहीं जो 61 प्रतिशत उछाल दर्शाता है। सरकार ने मार्च 22 में समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में इस मद से 11.08 लाख करोड़ के प्रत्यक्ष कर की वसूली का लक्ष्य रखा है। इस तरह लक्ष्य की 85 प्रतिशत प्राप्ति हो चुकी हे। इस दौरान सकल वसूली (रिफंड की राश मिला कर) 10.8 लाख करोड़ रुपये रही। अनुमान है कि सरकार का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह लक्ष्य से ऊपर रहेगा। इससे वह आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए वित्त वर्ष के बाकी दो महीनों खर्च बढ़ाने की स्थिति में रह सकती है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि दर से कुल 22.2लाख करोड़ रुपये के कर राजस्व का लक्ष्य रखा है। अर्थशास्त्री सुरक्षा सिंह का कहना है कि सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती रोजगार के अवसर बढ़ाना है। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज में छोटी मंझोली कंपनियों को नयी भर्ती पर भविष्य निधि कोष में कंपनी की तरफ का अंशदान बजट के माध्यम से करने का प्रावधान जरूर किया है पर संगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन को गति देने की दिशा में बड़ी प्रगति की जरूरत है। उन्होंने कहा की भारत का वाणिज्यक निर्यात इस बार 400 अरब डॉलर से ज्यादा का हो सकता है। उन्होंने कहा कि उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) और डिजिटलीकरण अर्थव्यस्था में बुनियादी बदलाव लाने वाले कदम हैं जिनका आने वाले समय पर असर दिखेगा।...////...
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