आयुर्वेद की दो प्राचीन पांडुलिपियों का प्रकाशन
07-May-2025 08:31 PM 3911
नयी दिल्ली 07 मई (संवाददाता) केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने चिकित्सा विज्ञान की दो दुर्लभ आयुर्वेदिक पांडुलिपियों द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः और द्रव्यनामाकरनिघण्टुः को प्रकाशित किया है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने बुधवार को यहां बताया कि केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने पारंपरिक चिकित्सा में देश की समृद्ध धरोहर को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दो दुर्लभ और महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक पांडुलिपियों - द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः और द्रव्यनामाकरनिघण्टुः का प्रकाशन किया है। इन प्रकाशनों का अनावरण मुंबई में राजा रामदेव आनंदीलाल पोदार केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किया गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य रविनारायण आचार्य उपस्थित थे। मुंबई के प्रसिद्ध पांडुलिपिविज्ञानी और अनुभवी आयुर्वेद विशेषज्ञ, डॉ. सदानंद डी. कामत ने पांडुलिपियों का आलोचनात्मक संपादन और अनुवाद किया है। प्रो. वैद्य रविनारायण आचार्य ने भारत के प्राचीन ज्ञान को समकालीन शोध ढांचों के साथ जोड़ने में इस तरह के पुनरुद्धार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “ ये ग्रंथ केवल ऐतिहासिक कलाकृतियां नहीं हैं - वे जीवित ज्ञान प्रणालियां हैं जो सोच-समझकर अध्ययन और लागू किए जाने पर समकालीन स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोण को बदल सकती हैं।” वर्ष 1480 में मुद्गल पंडित ने द्रव्यरत्नाकरनिघण्टु: लिखा और इस अप्रकाशित शब्दकोश में अठारह अध्याय हैं जो औषधि के पर्यायवाची, चिकित्सीय क्रियाओं और औषधीय गुणों पर हैं। 19वीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में व्यापक रूप से संदर्भित यह ग्रंथ, धन्वंतरि और राजा निघण्टु जैसे शास्त्रीय निघण्टुओं से प्रेरणा लेता है। यह पौधे, खनिज और पशु मूल से कई नए औषधीय पदार्थों का दस्तावेजीकरण करता है। पंद्रहवीं शताब्दी में लिखित द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः एक आयुर्वेदिक शब्दकोश जिसकी रचना भीष्म वैद्य ने की है। यह औषधि और पौधों के नामों के समानार्थी शब्दों पर केंद्रित है। कुल 182 श्लोकों और दो कोलोफोन श्लोकों को शामिल करते हुए।...////...
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