09-Jun-2024 08:42 PM
5332
पटना 10 जून (संवाददाता) पिता (रामविलास पासवान) का साया सिर से उठते ही परिवार में फूट और राजनीतिक विरासत से बेदखल करने के चाचा पशुपति कुमार पारस की कोशिशों से उत्पन्न परिस्थितियों में कई बार ऐसा लगा कि रामविलास के घर में रोशन ‘चिराग’ को बुझाने की खातिर परिवार के लोगों ने ही ‘हवाओं से शर्त लगा रखी है’ लेकिन पिता के दलित उत्थान के सपनों को जिंदा रखने के लिए कड़ी मेहनत और संघर्ष की भट्ठी में तपकर सांसद चिराग पासवान ने इस बार के चुनाव में न केवल पांच की पांच सीटें जीतीं बल्कि पहली बार केंद्रीय मंत्री का पद भी हासिल किया।
श्री रामविलास पासवान और रीना पासवान के घर 31 अक्टूबर 1982 को जन्मे चिराग पासवान ने 12वीं की पढ़ाई दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल से की। झांसी के कंप्यूटर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से बीटेक के सेकेंड सेमेस्टर तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड में किस्मत आजमाई लेकिन वर्ष 2011 में उनकी फिल्म ‘मिले ना मिले हम’ के फ्लॉप होने के बाद वर्ष 2012 से अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के काम में सक्रिय हो गए। इसके बाद राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में उनकी सक्रियता काफी बढ़ गई।
चिराग को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार के जमुई (सु) संसदीय सीट से लोजपा का उम्मीदवार बनाया गया। इस चुनाव में उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुधांशु शेखर भास्कर को लगभग 85 हजार मतों के अंतर से पराजित कर दिया। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के भूदेव चौधरी को हराकर लगातार दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद रामविलास पासवान ने नवंबर 2019 में अस्वस्थता के कारण चिराग पासवान को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उन्हें लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।
अबतक चिराग के निजी और राजनीतिक जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन 08 अक्टूबर 2020 को पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी जिंदगी में जैसे भूचाल आ गया। अभी पिता के निधन के सदमे से वह उबर पाते कि चाचा पशुपति कुमार पारस और उनके बीच लोजपा पर अधिकार के लिए विवाद शुरू हो गया। विवाद इस कदर बढ़ा कि लोजपा दो फाड़ में टूट गई। श्री पारस ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) तो चिराग ने लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (लोजपा-आर) बनाई। इतना ही नहीं लोजपा के अधिकांश सांसदों के पारस गुट में चले जाने से श्री पारस को मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बना दिया गया। इसके बाद चिराग पासवान के जीवन में असली संघर्ष शुरू हुआ। अब उनके सामने अपने परिवार को संभालने के साथ ही पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने की भी चुनौती थी। पिता के निधन के बाद अगले चार साल तक उन्होंने अटूट संघर्ष किया और वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के समय राजनीति ने ऐसी करवट ली कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने बिहार में चिराग की लोजपा-आर को पांच सीटें हाजीपुर, समस्तीपुर, वैशाली, खगड़िया और वैशाली दे दी, जिससे श्री पारस की पार्टी इस चुनाव के रेस से बाहर हो गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री चिराग पासवान को पुत्र तुल्य बताया और उन पर भरोसा भी जताया। चिराग ने इस भरोसे पर खरा उतरते हुए सभी पांच सीटें जीतकर अपनी राजनीतिक कुशलता का लोहा मनवा लिया। समस्तीपुर (सु) संसदीय संसदीय सीट से पार्टी उम्मीदवार शांभवी चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी सन्नी हजारी को एक लाख 87 हजार 251 मत, वैशाली से वीणा देवी ने राजद प्रत्याशी पूर्व विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को 89 हजार 634 मत, बिहार की हाइप्रोफाइल सीट में शामिल हाजीपुर से चिराग पासवान ने राजद के शिवंचद्र राम को एक लाख 70 हजार 105 मत, जमुई (सु) से चिराग पासवान के बहनोई अरूण भारती ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद उम्मीदवार अर्चना कुमारी को एक लाख 12 हजार 482 मत और खगड़िया से राजेश वर्मा ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) प्रत्याशी संजय कुमार को एक लाख 61 हजार 131 मतों के अंतर से पराजित कर दिया।
ख़ुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ बताने वाले चिराग पासवान ने विरोधियों की लंका जलाकर पिता रामविलास पासवान द्वारा रोशन किए गए ‘चिराग’ को लोगों के हवाओं से शर्त लगाने के बावजूद जलाए रखा।...////...